आँखो में क्रोध है
Kavitadilse.top द्वारा आप सभी पाठकों को समर्पित है।
दिल में भी आक्रोश है।
मानो आज सृष्टि का अंत करने को
उनकी तीसरी नेत्र व्याकुल है।
मानवता का नामोनिशान आज
किसी मानव में नहीं दिख रहा।
जिसे देखो स्वार्थवश हो
अपने हित की बस यूँ सोच रहा।
अपने प्रियजनों के खून बहाने में
उनमें कोई ना संकोच रहा।
क्या यही दिन देखने को ब्रह्मा ने
कभी मानव का सृजन किया।
मानवता का पाठ पढ़ाना था जिन्हें
सही मार्ग दिखाना था जग को।
राक्षस बन
अपने रचियता पर ही
आज क्रूर प्रहार किया।
कल्कि अवतार लेने को है इस युग में
करने को है पूरे जग का सर्वनाश।
आज पाप की गगरी भर चुकी है
अब तो लेना होगा बागडोर
ईश्वर को अपने हाथ में।
written by Sushil Kumar at kavitadilse.top
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