जीवन के पथ पर चलते चलते,मैं बहुत थक चुका हूँ माँ।
सारी जिम्मेदारियों की बोझ उठाते उठाते,मेरे कँधे भी झुक चुके हैं माँ।
जबसे बचपन छोड़,मैने जवानी में कदम रखा है माँ।
जिम्मेदारियों के बोझ तले,साँस भी ले नहीं पाता हूँ माँ।
सारी जिम्मेदारियों की बोझ उठाते उठाते,मेरे कँधे भी झुक चुके हैं माँ।
जबसे बचपन छोड़,मैने जवानी में कदम रखा है माँ।
जिम्मेदारियों के बोझ तले,साँस भी ले नहीं पाता हूँ माँ।